*⚜️स्रोत - महारानी लक्ष्मी बाई (भाग-१०६)*


*🟥महारानी लक्ष्मीबाई का शासन समय और झाँसी की लड़ाई-३५*


*🔶युद्ध में प्राण देकर स्वर्ग में जाना सबसे उत्तम है। जो युद्ध से पीठ फिरते हैं उनकी गति नहीं होती, और जो सम्मुख युद्ध में प्राण देते हैं वे मुक्त हो जाते हैं।यश-अपयश, हानि-लाभ दैवाधीन होते हैं। मनुष्य को यथाशक्ति यत्न करना चाहिए - चाहे उसमें सफलता हो या ना हो। इस प्रकार अपने मन में विचार कर लक्ष्मीबाई ने निराशा और भय का त्याग किया;और अपनी स्वाभाविक शूरता की स्फूर्ति से उत्तेजित होकर अंग्रेजों के साथ अंतिम युद्ध करने का निश्चय किया।*


*🔶बहुत दिनों से महारानी के यहां लगभग डेढ़ हजार अफगानी मुसलमान नौकर थे। उन्हें साथ लेकर स्वयं हथियार बांधे और वे तुरंत किले के नीचे उतरी और बड़े फाटक से बाहर निकलकर दक्षिण की ओर उन्होंने धावा किया। शहर की दक्षिण दीवार फांद कर जो हजारों गोरे भीतर घुस आए थे उनमें और महारानी की सेना में घोर युद्ध होने लगा।*


*🔶लक्ष्मीबाई अपने हाथ में नंगी तलवार लिए, घोड़ों पर सवार हो सबसे आगे जा रही थी। पीछे पीछे उनकी अफगानी सेना आ रही थी। ज्यों ही दोनों पक्ष के लोग एक-दूसरे से भिड़े त्यों ही अफगानी लोग गोरों को तलवार से काट-काटकर फेंकने लगे। जब गोरों ने देखा कि तलवार युद्ध में अफगानीयों का सामना करना व्यर्थ है तब यह लोग इधर-उधर भाग गए और घरों की आड़ से महारानी की सेना पर बंदूके चलाने लगे

*🚩सनातन ही सत्य है🚩*