मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी यानी अवंतिका , उज्जैयिनी समेत कई नामों से प्रसिद्ध शहर उज्जैन । जहां भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग है । मां शिप्रा के तट पर बसा हुआ शहर अपनी धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है । उज्जैन को भगवान महाकाल की नगरी कहते हैं । शिव पुराण के अनुसार उज्जैन में बाबा महाकाल का मंदिर काफी प्राचीन है । इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पालन करता नंद जी की 8 पीढ़ी पूर्व हुई थी । जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इस मंदिर में दक्षिण मुखी होकर विराजमान है । महाकाल मंदिर के शिखर के ठीक ऊपर से कर्क रेखा गुजरी है । इसी वजह से इसे धरती का नाभि स्थल भी माना जाता है । उज्जैन के राजा प्रद्योत के काल से लेकर ईसवी पूर्व दूसरी शताब्दी तक महाकाल मंदिर के अवशेष प्राप्त होते हैं । महाकालेश्वर मंदिर से मिली जानकारी के अनुसार ईस्वी पूर्व छठी सदी में उज्जैन के राजा चंद्रप्रद्योत ने महाकाल परिसर की व्यवस्था के लिए अपने बेटे कुमार संभव को नियुक्त किया था ।

14 वीं और 15 वीं सदी के ग्रंथों में महाकाल का उल्लेख कहा जाता है कि 10 वीं सदी के अंतिम दशकों में पूरे मालवा पर परमार राजाओं का कब्जा हो गया । 11 वीं सदी के आठवें दशक में गजनी सेनापति द्वारा किए गए आघात के बाद 12 वीं सदी के पूर्वार्ध में उदयादित्य एवं नर वर्मा के शासनकाल में मंदिर का पुनर्निमाण हुआ । इसके बाद सुल्तान इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर मंदिर पर दोबारा आक्रमण कर इसे ध्वस्त कर दिया लेकिन मंदिर का धार्मिक महत्व हमेशा बरकरार रहा । 14 वीं व 15 वीं सदी के ग्रंथों में महाकाल का उल्लेख मिलता है । 18 वीं सदी के चौथे दशक में मराठा साम्राज्य का मालवा पर अधिपत्य हो गया । जिसके बाद पेशवा बाजीराव प्रथम ने उज्जैन का प्रशासन अपने विश्वस्त सरदार राणौजी शिंदे को सौंपा । जिनके दीवान सुखटंकर रामचंद्र बाबा शैणवी ।

ऊपर वाले भाग पर नागचंद्रेश्वर मंदिर जिन्होंने 18 वीं सदी में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया । वर्तमान में जो महाकाल मंदिर स्थित है उसका निर्माण राणौजी शिंदे ने ही करवाया है । वर्तमान में महाकाल ज्योतिर्लिंग मंदिर के सबसे नीचे के भाग में प्रतिष्ठित है । मध्य के भाग में ओंकारेश्वर का शिव लिंग है तथा सबसे ऊपर वाले भाग पर साल में सिर्फ एक बार नागपंचमी पर खुलने वाला नागचंद्रेश्वर मंदिर है । मंदिर के 118 शिखर स्वर्ण मंडित हैं , जिससे महाकाल मंदिर का वैभव और अधिक बढ़ गया है ।

राक्षस के वध से जुड़ी एक धार्मिक कथा धार्मिक कथाओं में कहा गया है कि अवंतिका यानी उज्जैन भगवान शिव को बहुत पसंद है । उज्जैन में शिव जी के कई प्रिय भक्त रहते थे । एक समय की बात है जब अवंतिका नगरी में एक ब्राह्मण परिवार रहा करता था । उस ब्राह्मण के चार पुत्र थे । दूषण नाम का राक्षस ने अवंतिका नगरी में आतंक मचा रखा था । वह राक्षस उज्जैन के सभी वासियों को परेशान करने लगा था । राक्षस के आतंक से बचने के लिए उस ब्राह्मण ने भगवान शिव की अर्चना की । ब्राह्मण की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव धरती फाड़ कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए और उस राक्षस का वध करके उज्जैन की रक्षा की । उज्जैन के सभी भक्तों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर हमेशा रहने की प्रार्थना की । भक्तों के प्रार्थना करने पर भगवान शिव अवंतिका में ही महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हो गए ।


The religious capital of Madhya Pradesh i.e. Avantika, Ujjain and the famous city Ujjain by many names.  Where Mahakaleshwar Jyotirling is one of the twelve Jyotirlingas of Lord Shiva.  The city situated on the banks of Maa Shipra is known for its religious beliefs.  Ujjain is called the city of Lord Mahakal.  According to Shiv Purana, the temple of Baba Mahakal in Ujjain is quite ancient.  This temple was established in the Dwapar era, 8 generations ago of Nand ji following Lord Krishna.  As you all know that one of the 12 Jyotirlingas sits in this temple facing south.  The Tropic of Cancer has passed just above the summit of Mahakal temple.  For this reason, it is also considered as the navel site of the earth.  The ruins of the Mahakal temple are found from the time of King Pradyot of Ujjain to the second century BC.  According to the information received from the Mahakaleshwar temple, in the sixth century AD, King Chandrapradyot of Ujjain had appointed his son Kumar Sambhav to arrange the Mahakal complex.

In the texts of the 14th and 15th centuries, Mahakal is said to have been annexed by the Parmar kings in the last decades of the 10th century.  The temple was rebuilt during the reign of Udayaditya and Nar Varma in the first half of the 12th century, following a blow by the Ghazni commander in the eighth decade of the 11th century.  After this Sultan Iltutmish again attacked the Mahakaleshwar temple and demolished it, but the religious importance of the temple always remained intact.  The mention of Mahakal is found in the texts of 14th and 15th century.  In the fourth decade of the 18th century, the Maratha Empire took control of Malwa.  After which Peshwa Bajirao I handed over the administration of Ujjain to his trusted Sardar Ranoji Shinde.  Whose Diwan Sukhtankar Ramchandra Baba Shainavi.

Nagchandreshwar temple on the upper part who got the temple rebuilt in the 18th century.  The Mahakal temple which is situated at present has been built by Ranoji Shinde.  Presently Mahakal Jyotirlinga is revered in the lowest part of the temple.  In the middle part is the Shiva Linga of Omkareshwar and on the top part there is the Nagchandreshwar temple which opens only once in a year on Nagpanchami.  The 118 peaks of the temple are covered with gold, due to which the splendor of the Mahakal temple has increased further.

A religious legend related to the slaying of the demon Religious stories say that Avantika i.e. Ujjain is very much liked by Lord Shiva.  Many dear devotees of Shiva lived in Ujjain.  Once upon a time there used to be a Brahmin family in the city of Avantika.  That brahmin had four sons.  A demon named Dushan had created terror in the city of Avantika.  That demon started troubling all the residents of Ujjain.  To escape the terror of the demon, the Brahmin worshiped Lord Shiva.  Pleased with the penance of the Brahmin, Lord Shiva tore the earth and appeared in the form of Mahakal and saved Ujjain by killing that demon.  All the devotees of Ujjain prayed to Lord Shiva to stay at the same place forever.  On the prayers of the devotees, Lord Shiva got established there in the form of Mahakal Jyotirlinga in Avantika.